STORYMIRROR

neha chaudhary

Abstract

3  

neha chaudhary

Abstract

दिल दिमाग़ की कहानी

दिल दिमाग़ की कहानी

1 min
290

कैसा है ये मंजर

       दिल की सुनूं या दिमाग़ की

दिल कहे, बो दिमाग़ नहीं मानता

  दिमाग़ के फॉर्मूले दिल नहीं जानता l

होता है ऐसा  कभी कभी

     दिल रोता है

दिमाग़  समझाता है

       ना समझूँ मैं कौन सच्चा

कौन झूठा है l

दिल ने किये ऐसे ऐसे फैसले

    जो लगे थे मुझे करिश्मे 

जब बात दिमाग़ की आयी

तो लुट गयी जिंदगानी

हम सोचते ही रह गए

लोग उल्लू बना के छोड़ गए

अब भी समझ ना आयी

दिल दिमाग़ की कहानी...............l


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract