दिल दिमाग़ की कहानी
दिल दिमाग़ की कहानी
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कैसा है ये मंजर
दिल की सुनूं या दिमाग़ की
दिल कहे, बो दिमाग़ नहीं मानता
दिमाग़ के फॉर्मूले दिल नहीं जानता l
होता है ऐसा कभी कभी
दिल रोता है
दिमाग़ समझाता है
ना समझूँ मैं कौन सच्चा
कौन झूठा है l
दिल ने किये ऐसे ऐसे फैसले
जो लगे थे मुझे करिश्मे
जब बात दिमाग़ की आयी
तो लुट गयी जिंदगानी
हम सोचते ही रह गए
लोग उल्लू बना के छोड़ गए
अब भी समझ ना आयी
दिल दिमाग़ की कहानी...............l