दीवानगी
दीवानगी
रात गुजरी होगी मेरी आंखो से ही ,
मै कहां सोया रात भर के लिए,
उसका ख्याल छाया रहा,
एक नशा मुहब्बत के लिए,
ढूंढा करते हैं ज़मीन से फलक तक हम उसे,
वो बेवफा थी या हम थे इस बात कि खबर थी किसे,
राहें जुनून में हर सांस में एक तेरा नाम छुपा ही लिए,
रात गुजरी होगी मेरी आंखो से ही,
कि मै कहां सोया रात भर के लिए,
लोग कहते हैं दीवाना मुझको,
मै दर बे दर भटकता ही रहा,
तिशनगी बढ़ती ही रही ,
दर ए दरवाजों पर दस्तक भी दी,
पर वो वहा न मिले जहां दस्तक हमने दी थी,
समय बदलता रहा कुछ हम भी बदल से गए ,
पर आज भी उस गली में नजर घुमा लेते हैं,
जहां मिले थे हम पहली बार उससे।

