धरती
धरती
ऐ धरा तेरे बारें में हम कुछ कह नहीं सकते हैं,
तेरे बिना कोई पल हम रह नहीं सकते हैं।
तू हमसे प्राणी-पौधों से कुछ खास नहीं लेती है,
बदले में तू सब कुछ हमें फोकट में देती है।
पर हम कितने निर्दयी निष्ठूर प्राणी है,
लेकिन तू कितनी बड़ी सयानी है।।
कैसे ऐ वसुंधरा तू सब सब्र से यह सहती है,
हाँ, तू यह हमें अलग अंदाज में अजीब से कहती है।
ऐ धरा तू यह सब सहकर बड़ी धीर गहन गम्भीर है,
पर हम सब कैसे कब क्यों कितने नहीं अधीर है।।
अगर रहना है सबको सही ढंग से सुरक्षित इस धरा पर,
तो ऐ नादाँ इन्सान तुझे छोड़ना होगा शोषण इस धरा पर।
कह रही है जोड़कर आपको कर कलम भूताराम की,
अब तो ऐ नादाँ इन्सान कर धरा पर बड़ा रहमों-करम।
