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Abhinav Khandelwal

Abstract

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Abhinav Khandelwal

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चलते रहना

चलते रहना

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ए पल थोड़ा थम जा

मुझे कुछ संभलना है

इस भागती दुनिया में

सुकून भी कहीं लेना है


सागर की बहती लहर से

पानी के भीने असहास में

निरंतर चलने के बीच

किनारे पे आराम करना है


चाहता हूं सुबह की

मीठी ठंड की सिहरन से

रुक कर आसमाँ के आंचल में

शांत रहना भी सीखना है


गर्मी की तपन और

सर्दी की ठूठराहट सहते

बसंत की खुशबू के साथ

बारिश की बूंदें पीना है


बच्चों की किलकारी संग

और यौवन के भरे रंग मैं

अल्हड़ता से चलते हुए

मौज भी तो लेना है


मां के प्यार की वारिश

और पिता के आशीष से

अपने कर्तव्यों को निभाने

की कला भी तो सीखना है


काम के लिए ही जीने

और पैसे कमाने की होड़

से हटकर कभी दोस्तों के

साथ भी तो समय बिताना है


कभी धूप कहीं छांव के

जीवन के अनजाने सफर में

मुझे खुशी से जीने का

एक रास्ता भी तो निकलना है।


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