STORYMIRROR

Shashiprakash Saini

Abstract

4  

Shashiprakash Saini

Abstract

चल छाता छोड़ चले

चल छाता छोड़ चले

1 min
559

बच्चें हो जाएं फिर से

चल छाता छोड़ चले


डर डर के ना जीना मुझको

घुट घुट के ना जीना

बचपन फिर बन आएं

चल छाता छोड़ चले


अब की हर बूंद भिगाए

कीचड़ सन कर हम आएं

हम भी बरसात निभाएं

चल छाता छोड़ चले

 

कितनी बरसातें खेला ना

हवा गेंद में भर लाएं

बल्ला खूब नचाएं

चल छाता छोड़ चले


जीवन गठरी मैली है

गमगीन हुआ है कुर्ता

रंगत बरसात बढ़ाए

चल छाता छोड़ चले


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract