सुबह मशीन बन पेट की खातिर ईंधन जुटाता हूँ रात कविता करता हूँ इंसान हो जाता हूँ जैसे तन के लिए रोटी सुविधा है मन के लिए कविता है
अब की हर बूंद भिगाए कीचड़ सन कर हम आएं हम भी बरसात निभाएं चल छाता छोड़ चले अब की हर बूंद भिगाए कीचड़ सन कर हम आएं हम भी बरसात निभाएं चल छाता छोड़ ...
मुझ को मनाना एक रुपया मेरा खजाना एक रुपया मुझ को मनाना एक रुपया मेरा खजाना एक रुपया
जो कलिकारी से शुरू हुई वो सांस की डोरी टूट गई जीवन था क्षण भर का साथ ये दुनिया तुझसे रूठ गई जो कलिकारी से शुरू हुई वो सांस की डोरी टूट गई जीवन था क्षण भर का साथ ये दुनिया...