चिंगारी
चिंगारी


घास फूस का ढेर पड़ा था,
उस पर गिरी एक चिंगारी,
हटा धुंधलका हुआ उजाला,
चमक उठी गलियां सारी।
हंस कर बोली वह चिंगारी
ओहो मैं हूं कितनी न्यारी
चाहे तो जला सकती हूं,
कलयुग की दुनिया सारी।
नारी है नर से बेहद भारी
उस पर है जिम्मेदारी सारी,
हर घर गूंजे उसकी किलकारी
क्यों बने वह अबला बेचारी,
घास फूस की है यह दुनिया
नारी की इच्छा है चिंगारी,
चाहे तो चमका सकती है,
अपने बल से वसुधा सारी।