चाँद से गुफ़्तगू
चाँद से गुफ़्तगू
आओ चल कर हम चाँद से गुफ़्तगू करें,
आफ़ताबी-रोशनी में ख़्वाब चार-सू करें!
गुफ़्तगू में बातें होंगी, उफ़क़ के पार की,
इन बादलों में बसते, अनबुझे संसार की!
रात की महफ़िल सजी सितारे हैं मुतरिब,
साज़ में खोई आँखें, नींद के मानो क़रीब!
सो चुके जहान में, कहीं ख़्वाब जागता है,
ऐसी रातों में चाँदनी का शबाब जागता है!
ऐसी ही कितनी रात हम जगा करेंगे यूँही,
चाँद से तो रात-भर बातें किया करेंगे यूँही!
छोड़ कर जहान भर की खुशियाँ यहीं पर,
चलो चलें हम उस चाँद के साथ कहीं पर!