Rudransh Deep

Abstract

2  

Rudransh Deep

Abstract

चाह

चाह

1 min
453


आने वाली बारिश की चाह में....


चन्द बूंदों की आस इन,

सूखते दरख्तो को हो रही।

पर क्यूं अब तक वो बूंदें,

बादलों के आगोश में सो रही?


हवाओं की शिफारिश लगेगी ,

शायद ये जरिया ही काम आएं।

गिरेंगी वो बूंदें कुछ इस तरह,

की सारी दुआएं खुद लेे जाएं।।


फिर उन नव पल्लव को,

नए स्वप्न दिखाएंगी।

खुल के जीना ये सीख,

हम प्राणियों को दे जाएंगी।।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Rudransh Deep

Similar hindi poem from Abstract