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Mayank Kumar

Romance

3  

Mayank Kumar

Romance

बिना फेरे के भी तुम मेरे

बिना फेरे के भी तुम मेरे

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किस फेरे की बात करूं

जो मुझको अंधेरा देता हो

जीवन के सुर में भी

बेसुरापन देता हो

किस फेरे की बात करूं !


या फिर उस फेरे की बात करूं

जो दिल में एक आंगन लिपता हो

अपने हाथों को मैला करके भी

दिल की भूमि सुहागन करता हो

किस फेरे की बात करूं !


एक फेरा है तन-मन का

जो सालों फला करता है

क्या फागुन, क्या सावन, क्या कातिक

हर मौसम तृप्त करता है

और एक फेरा है तन का बस

जो मौसमी फला करता है

किस फेरे की बात करूं !


मेरा फेरा हो राधा रानी-सा

जिसमें बस कान्हा रहता हो

बिन फेरे के ही सब

भाव-वेदना कहता हो


मेरा फेरा न हो पश्चिमी सभ्यता-सा

जो दिन-रात षडयंत्र करता हो

एक "दिन" को रखता दिल में

पर रात्रि कहीं औऱ लिपटता हो

किस फेरे की बात करूं।


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