भूल करो स्वीकार
भूल करो स्वीकार


लक्ष्य के पथ पर होती रहती हमसे भूल हजार
कर लो अपनी भूल को सहज रूप से स्वीकार
एक ही भूल को यदि तुम बारम्बार दोहराओगे
अज्ञान रूपी बेहोशी में स्वयं को सोया पाओगे
खुद से होने वाली किसी ग़लती से ना घबराओ
ग़लती है उन्नति की निशानी आगे बढ़ते जाओ
अपनी भूल से शिक्षा लेने की आदत को पालो
चिन्तन मनन करके भूल का समाधान निकालो
खुद में छिपे अवगुणों की जासूसी करते जाओ
मुझ में क्या क्या अवगुण ये सबसे पूछते जाओ
अपनी ही ग़लतियाँ अगर खुद से ही छिपाओगे
जीवन में कोई सफलता कभी नहीं तुम पाओगे
अपनी सभी ग़लतियाँ जब करोगे तुम स्वीकार
तुम्हारी सफलता में हर ग़लती बनेगी मददगार
तुम्हारी मनो स्थिति शांत और स्पष्ट हो जाएगी
विघ्नों रूपी धुन्ध भी लक्ष्य पथ से छंट जाएगी
ग़लतियों से सबक सीखना स्वयं को सिखाओ
इसी आदत को तुम सफलता की सीढ़ी बनाओ
खुद के प्रति बनते जाओ तुम पूरे ही ईमानदार
गुणों को बनाओ अपनी सफलता का हथियार
अपने कर्म व्यवहार में गुणों को तुम अपनाओ
सर्व गुणों को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाओ
गुणों की प्रचुरता से तुम सफलता को पाओगे
सबके लिए तुम आदर्श व्यक्तित्व कहलाओगे