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Uma Singh

Abstract

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Uma Singh

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भोर का चांद

भोर का चांद

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भोर का चांद 

लग रहा इतना शांत 

उदास मन से वह निहारता

 किसी किसी को अनकहे शब्दों से पुकारता 

 चांदनी कहां खो गई आसमान में

 यह कहते कहते चंद्रमा भी विलय हुआ गहरे सागर में।


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