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Rita Jha

Inspirational

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Rita Jha

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भाषा और विराम

भाषा और विराम

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बात एक बड़ी, आज मेरी समझ में है आई।

बिन विराम के, भाषा न करे कभी उन्नति भाई।।


ध्वनि तो हरपल कई प्रकार के चहुंओर गूंजते ही रहते।

क्या हम सभी ध्वनियों को भाषा की श्रेणी में रखते? नहीं...


भाषा की परिभाषा के लिए है ध्वनि ही एक आधार।

किंतु भाव व अर्थपूर्ण वाचिक ध्वनि करे भाषा का विस्तार।।


बोलने, लिखने व पढ़ने के लिए है ज़रूरी विश्राम सम विराम।

चिह्न विराम का प्रयोग न करें तो, बोली लगती बे-लगाम।


जब लेना हो एक से ज्यादा नाम, जरा ठहरें और लें अल्पविराम,

अगर कहनी हो वाक्य कोई बड़ी,अर्धविराम लेते जाएँ ।


बात वह सबको खूब भाएगी, खुशी मुख पर स्वतः छाएगी।

श्रोता विस्मय से भर उठेंगे, उद्धरण संग, "वाह, वाह!!" कह उठेंगे


पढ़ाई-लिखाई की बात जब आए,आ० (आदरणीय) प्रो० (प्रोफेसर) याद आते हैं।

अस्वस्थता होती जब कभी डाॅ० (डाक्टर) के पास भाग कर हम जाते हैं।


सुबह-सुबह शुरू हो जाती है दिनचर्या की आपाधापी,

काम में जो कभी त्रुटि हो जाती, विस्मरण चिह्न सम त्रुटि पूरण करते हैं।


शाम होते ही हम सभी चाय-कॉफी के मज़े लेते हैं।

रात्रि भोजन के पश्चात, दिनचर्या को पूर्ण विराम देते हैं।


सबसे ज्यादा व जरूरी होती है अच्छी नींद रूपी पूर्ण विराम,

सिर्फ अंत ही नहीं है, आगे नई शुरुआत करना सिखाता पूर्ण विराम।

 

होता है शरीर के लिए जैसे यथोचित विश्राम करना परम ज़रूरी,

लेखन, वाचन व पठन में शब्दों के अंत व बीच वैसे ही विराम चिह्न ज़रूरी।।



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