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Amrita Mishra

Inspirational Tragedy

5.0  

Amrita Mishra

Inspirational Tragedy

बेटी

बेटी

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बात जब हो इक बेटी की,

तो फिर सब चुप हो जाते हैं।

पद्मावती के कुछ दृश्यों से,

तकलीफ़ उन्हें होती है ।

पर जब बेटी बेपर्दा हो तो,

सब छिपकर सो जाते हैं।

पर्दे की जरूरत जिस्मों को नहीं,

उन हैवानो की आँखों को है।

जिनके पक्ष में नेता कहते,

बच्चे है, थोड़ा तो बहक ही जाते है ।

एक मासूम सिसकती बेटी

अपनी माँ से करे सवाल,

माँ, ये रेप क्या होता है ??

क्या यह सबका होता है ??

माँ, मैं रात में न निकलूँ

पर वो दिन में खा जाते है।

माँ, मैं कपड़े कौन से पहनूं ??

वो सब नोंच ले जाते है ।

माँ, मैं किस उम्र में हूँ महफूज़ ??

मैं तब तक खुद को बचा लूंगी ।

माँ, मैं किस जगह पर हूँ महफूज़ ??

मैं खुद को वहाँ छुपा लूंगी।

माँ, मैं किस पे करूँ विश्वास ??

किसका हाथ थाम लूं मैं ??

वो एक चेहरे पर चेहरे हजार

लगा के सामने आते है।

मौलवी, पंडित, साधु, संत, फकीर,

वैद्य, गुरु, नेता, फौजी, पुलिस, वकील।

माँ, इनके रूप है कई हजार,

मैं किससे मदद की करूँ गुहार? ?

परियों की कहानी हो जाएँगीं गुम,

जब रात में वह होगी गुमसुम ।

सुला ना पाएगा बंदर, बिल्ली का भी डर,

माँ कहेगी - बेटी सो जा

आवाज़ पहुंच गई कानों तक गर ,

तो रेप तेरा हो जाएगा,

फिर चैन से जग सो जाएगा।

तू बच भी गई गर मुश्किल से,

तो सब आँखो के तीर चुभोएंगे,

शक के घेरे में तुझको रखकर,

ये प्रश्न तुझ ही से पूछेंगे।

मिलनी थी जिनको कड़ी सजा,

आखिर में वो बच ही जाएँगे।

फिर नई निर्भया ढूंढेगे,

और उसको नोंच के खाएँगे।

देख के अनदेखा करने वालो,

ये आपकी आखिरी ग़लती हो सकती है ।

धर्म और राजनीति का, गन्दा खेल खेलने वालों

नई निर्भया आपके घर की भी हो सकती है।

माँ बोली बेटी यह कलियुग है,

यहाँ सिर्फ दुशासन आते है।

तेरी रक्षा तू खुद करना,

यहाँ कृष्ण नहीं आ पाते है।

बात जब हो इक बेटी की,

तो फिर सब चुप हो जाते है।


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