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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

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बेटी से ही, घर की शान है

बेटी से ही, घर की शान है

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बेटी से ही, घर की शान है।

बेटी से ही , घर का सम्मान है।।

अनमोल है जग में , बेटियां।

बेटी से ही , घर का मान है।।

बेटी से ही---------------------।।


मुकाम कौनसा , नहीं पाया बेटी।

देश की सत्ता , संभाली बेटी ने।।

नाप लिया आसमान, बेटी ने।

देश की शान, बढ़ाई बेटी ने।।

बेटों से नहीं कम, बेटियां।

बेटी ही घर का, अभिमान है।।

बेटी से ही--------------------।।



खुशकिस्मत है वह इंसान।

जिसके घर बेटी, पैदा हुई है।।

जिसने दिया, सम्मान बेटी को।

ख्याति उसकी, दुगनी हुई है।।

बेटी बिना , सूना है आँगन।

बेटी ही घर का, स्वाभिमान है।।

बेटी से ही----------------------।।



घर का वारिस, मानो बेटी को।

बेटी से भी, गौरव बढ़ता है।।

कोख में , नहीं मारो बेटी को।

बेटी से भी , वंश बढ़ता है।।

बनती है बेटी, बुढ़ापे की लाठी।

बेटी भी तो, एक सन्तान है।।

बेटी से ही--------------------।।


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