बेेचारा
बेेचारा
मैं कहाँ बेेचारा हूँ,
बस वक़्त का मारा हूँ।
कभी लग जाता हूँ,
किसी घाट से,
थोड़ा बेसहारा हूँ
आंंख के आँसू
आंंख के अंदर ही
दम तोड़ देते है।
दर्द को भी
पी जाता सारा हूँ।
अपने शब्दों से भी डरता
अब ज्यादा हूँ,
क्योंकि सच होते हुुुए भी,
लोग मतलब अलग
निकाल लेेेते है
अपने घर में अपने रिशतों
से हारा हूँ
मैं कहाँ बेेचारा हूँ,
बस वक़्त का मारा हूँ।