संकल्प नववर्ष का ये
संकल्प नववर्ष का ये
इस वर्ष की चुनौतियां दे गई एक स्वप्न गढ़ने को
जिज्ञासा की दुपहरी स्थिर हुई, सौंदर्य आनंद रचने को
आओ आंगन की किलकारियां बसने दें सभी हृदय में
छोड़े ना हाथ उत्थान का जब कांटे टूटे मरुस्थल के
निचोड़े स्वरों से अनंत राग धन्य करो अब सरगम को
मां शारदे से पूछकर जीवंत करो अब मरघट को
गंगा तो बहा रही समरसता का, देखो निर्मल पवित्र धार
तिलक करो अभेद अमरता, खोलो प्रसन्न यह बुझा द्वार
गिरते झरते अश्रु मांग रहे, अपना मोल दशो दिशा से
खंडित प्रेम टूट रहे, भाग लिख रहे हैं विनाश के
सुबह की लाली, गोधूलि की सिंदूर, मांग रही तुमसे आज
ठहरो ...देखो इश का संस्तवन, करते कैसे विहंग आकाश
व्योम का मौन डूब रहा , वन वन निर्जन में छनकर
सुरभि की मादकता आह्लादित, यह गीत पुनः सुन सुनकर
समीर का मचलता बाल- हट यही कहता तुमसे आज
तारों की कलियां चुनकर के अंबर बिछा दो प्रांगण आज।