बचपन
बचपन
जितने काम है सोचे हमने, चलो आज सबकुछ छोड़ देते हैं,
आज कुछ नया नहीं करतें, भूत से कुछ यादें निचोड़ लेते हैं।
चलों जीवन के बीते बातों से, चंद सुहाने लम्हें तोड़ लेते हैं,
आज फिर अपनी यादों को, बचपन की ओर मोड़ देते है।
सोच बचपन का लाते ही, मैं फिर बच्चा बन जाता हूं,
आंख बंद करके सपनों में, उथल-पुथल खूब मचाता हूं।
जब भी रोता हुआ अपना, शक्ल कहीं दिख जाता है,
तो देख उसे "तरुण" हमेशा, मन-ही-मन सरमा जाता है।
मां के गोद की प्यारी नींद, अब तू कहां से लाएगा,
बचपन में कितना सुख था, ये तो वक्त ही बताएगा।
पिता के कंधे चढ़ने का, अब सुकुन कहां से आएगा,
सिर सहलाकर सुलाने वाला, तू वक़्त कहां अब पाएगा ?
राजा रानी वाली कहानियां, अब दादी कहां सुना पाएगी,
फिर से बचपन वाली ख़ुशी, हमारे अंदर कैसे आ पाएगी?
ये सब बातें तो अब केवल, एक याद बनकर रह जाएगा,
"तरुण" इन बातों को याद करके , फिर से बच्चा बन जाएगा।
याद आ रहा है हमको मैं जब भी, मेला घुमने जाता था,
खिलौना जो भी भाया मन को, तुरंत अपना हो जाता था।
तुम्हें भी ये ज्ञात ही है कि पिता, कितने दिलवाले होते है,
छोड़ अपने दिल की इच्छा, बच्चों के सपने संजोते है।।
अब घर की बातें बहुत हुई, जरा स्कूल को भी कर लूं याद,
दोस्तों ने भी जीना सिखाया, जीने का हुआ एक अलग अंदाज़।
स्कूल की वो पिछली सीटों का, याद कैसे मिट पाएगा,
हे ईश्वर! बस ये बता दें, क्या ये वक़्त दुबारा दे पाएगा ?
परीक्षा के क्षण में डर का भी, अलग कहानी होता था,
प्रश्न देखकर छूटे पसीने तब, नक़ल ही सहारा होता था।
कुछ शिक्षक बड़े हितकारी, कुछ को देख आग लग जाता था,
तो आग लगाने वाले सबका, कुछ नाम निकाला जाता था।
एक बात हम भूल रहे हैं, अभी दिमाग में आया है,
जब मेहमान घर आए, पैर छूने का रस्म निभाया है।
बात न थी यहां आशीर्वाद की, ना दिली इच्छा न संस्कार,
बस पैसे मिल जाएं कुछ, और झट घूमने हम जाएं बाज़ार।।
निकलो सपनों से तुम बाहर अब, कहां यादों में घुस जाते हो,
जो वक्त नहीं मिल सकता, उसपर वक्त क्यों तुम गंवाते हो ?
अब हो गए हो तुम सयाने, बड़ों जैसा तुम बात करों,
बचपन न मिल सकता दुबारा, उसपर वक्त मत बर्बाद करों।
यादें भी कैसी चीज है, कभी हंसाती कभी रुलाती है,
पर दुःख के समय को ये यादें, खुशियों से भर जाती है।
इन बचपने वाले दिनों को सबने, दुबारा पाना चाहा हैं,
बस "तरुण" उन्हीं यादों को, फिर से याद दिलाना चाहा है।
