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Hasmukh Rathod

Abstract

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Hasmukh Rathod

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बैरागी मन

बैरागी मन

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सब जगह पर गिरी बारीश की बूँदें।

रह गया कोरा ये मेरा मन उसे ढूंढे।।


सब से मिले वो हँसकर करे बातें।

हम से तोड़ दिये उसने सभी नाते।।


आवाज़ सुन उस जगह पहुंच जाते।

हमे देखकर वो हमसे दूर चले जाते।।


काश वो आकर हमारे पास बैठ जाते।

उसके बगैर हम दीन रात कैसे काटे?


बैरागी हुआ मन न सुने किसी की बातें।

अब वो ही दुनिया हमारी कैसे समझाए।।


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