बातें थी और बातें हैं
बातें थी और बातें हैं
हर एक सांस गिरवी है,
सिफारिश भी करूं किससे,
मेरा तू ही तो है,
बगावत भी करूं किससे,
मेरी खुद की ही सांसें तक
नहीं आयी मेरे हिस्से,
भला इस गरीबी में
तुझे दूं भी तो
किस मुंह से,
और
मेरे कुनबे के कुछ मुखिया,
लिये हैं खंजर हाथों में,
मैं जिनका अपना बन्दा हूं,
ज़हर है उनकी बातों में,
हमीं से दोस्ती
और दुश्मनी भी
हमसे निभाते हैं,
ये बातें करने वालो की
महज बातें थी,
बातें हैं।