बारिश
बारिश
सावन एक सपना सच होने जैसा
बूँद बूँद धरा को तप्त करता अंबर।
ऊमस माँ की कोख बन नव सृजन
करती कोपलों का।
धानी रंग में रच माँ का आँचल
करती नव श्रृंगार जैसे कोई दुल्हन।
सौंधी खूशबू मिट्टी की , बांवरा कर देती
बच्चों संग बूढो को बनती एक बार फिर
कागज की कस्ती जिसमे बैठ घूम आते
जाने कहाँ कहाँ हम।