बारिश की बूँदे
बारिश की बूँदे
खुद को पाया है
सब कुछ खो कर
आसमां से गिरी ये बूंदे
आज फिर से मिली मिट्टी में
मुझे भिगोकर
समंदर से उठी थी
इतनी ऊंचाई पर
लेकिन क्या पता था
आ मिलेंगी इस धरती पर।
खुदा की बनाई
इस कुदरत में
कोई कमी नहीं,
कोई गलती नहीं,
शायद उसने इंसान
बनाया होगा यही सोचकर ,
मासूम सा दिल दिया
प्यार से भरकर
बचपन बीता सारा
इसी मासूमियत को जीकर।
फिर क्यों भूल गया ऐ इंसान,
ये बारिश की बूँदे ,
जाती हैं तुझे सिखाकर,
इतना ऊँचा मत उड़
क्योंकि तू भी
एक दिन मिलेगा
इसी मिटटी में।
क्यूंकि आज सब कुछ
पाया है तूने
बहुत कुछ खो कर।