ख़ुदा का दर
ख़ुदा का दर


एक आसमान है सबके हिस्से में
फिर भी दुःख ही दुःख है सबके
किस्सों में
क्यों इतना मजबूर है इंसान
जब जानता है की सारी ख़ुशियाँ नहीं
सबके नसीबों में।
हालात बदल नहीं सकता
किस्मत अपनी लिख नहीं सकता
खुद को संभाल ले
और मान ले
की मिलना ही है एक दिन
इस मिट्टी में।
हाथ जोड कर मांग ले माफ़ी
उस ख़ुदा से, वक़्त रहते समझ ले
जितनी भी ख़ुशियाँ ढूढ
ले इस दुनिया में ,
कोई नहीं आता आँसू पोछने
खुद को संभाल ले
और मान ले
सिर्फ उस ख़ुदा का दर है काफी।