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Pravind Thakur

Abstract Tragedy Fantasy

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Pravind Thakur

Abstract Tragedy Fantasy

अवसाद

अवसाद

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अंधेरे का घनत्व भीतर से,

और कचोट रहा है।

बढ़ते अवसाद का कारण,

ढूंढते हुए बाहर सब बिखेर दिया..

दिमाग में उलझनों के धागे

गाँठों में परिवर्तित होने लगे।

सुन्न पड़ गया है अंदर सब कुछ

अनायास ही आँखें खुली रहती हैं,

नींद से बोझिल पलकों से अब

रिसता हुआ पानी भिगो देता है

मेरे काँधे को जहाँ मैं सिर

रख कर शान्त हो जाता था...


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