अवारा
अवारा
इन अंधेरी गलियों मैं ,
मेरा अवारा दिल कहीं घूमता है।
और मुझसे पूछता है,
तू कहाँ खो गया है,
तू क्यों नहीं मिल रहा है।
मैं जवाब दूँ या न दूँ ,
ये मै सोचता हूं
अब कह दूँ ।
मैं खोया नही हूँ मिल जाऊंगा
मैं सफ़र पर हूँ
मंज़िल को तो पालूँ
मैं तेरे पास आ जाऊँगा
तू है अभी अवारा
मै फिर अवारा बन जाऊँगा।
क्या मैं ये भी कहूं ?
जो तेरे संग था
वो अब चला गया है
मै अब कैसे बताऊ
वो अवारा पन अब नही रहा है।
क्या मुझे ये भी बताना है?
जो एक बार मंज़िल को पागया
तो फिर शायद ना आऊंगा।
मैँ वही ठहर जाऊंगा
मैं वापस न आऊँगा।