अर्चना
अर्चना
तू ही धरा, तू सर्वथा तू बेटी है ,तू ही आस्था
तू नारी है , मन की व्यथा तू परंपरा ,तू ही प्रथा।
तुझसे ही तेरे तपस से ही रहता सदा यहां अमन
तेरे ही प्रेमाश्रुओं की शक्ति करती वसु को चमन।
तेरे सत्व की कथाओं को ,करते यहाँ सब नमन
फिर क्यों यहाँ ,रहने देती है सदा मैला तेरा दामन।
तू माँ है,तू देवी, तू ही जगत अवतारी है
मगर फिर भी क्यों तू वसुधा की दुखियारी है।
तेरे अमृत की बूंद से आते यहां जीवन वरदान है
तेरे अश्रु की बूंद से ही यहाँ सागर में उफान है।
तू सीमा है चैतन्य की ,जीवन की सहनशक्ति है
ना लगे तो राजगद्दी है और लग जाए तो भक्ति है।
तू वंदना,तू साधना, तू शास्त्रों का सार है
तू चेतना,तू सभ्यता, तू वेदों का आधार है।
तू लहर है सागर की ,तू उड़ती मीठी पवन है
तू कोष है खुशियों का ,इच्छाओं का शमन है।
तुझसे ही ये ब्रह्मांड है और तुझसे ही सृष्टि है
तुझसे ही जीवन और तुझसे ही यहाँ वृष्टि है।
उठ खड़ी हो पूर्णशक्ति से।फिर रोशन कर दे ये जहां
जा प्राप्त कर ले अपने अधूरे स्वप्न को।
आ सुकाल में बदल दे इस अकाल को।
तू ही तो भंडार समस्त शक्तियों का।
प्राणी देह में भी संचार है तेरे लहू का।
