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AASTHA DUBEY

Abstract

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AASTHA DUBEY

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अपनों से हार गई

अपनों से हार गई

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ये कैसे इल्जाम है और कैसे ये सवालात हैं

चंद लोगों की दुनिया में वो अपनों से हार गई


कर्ज नहीं अपना फर्ज निभा रही थी

अपनों पर मैं आधी जिंदगी वार गईं

आज फिर से वो अपनों से हार गई


अब गवारा कहाँ अपनों को सलाह देना

दो शब्द खिलाफी के, मेहनत बेकार गई

आज फिर से वो अपनों से हार गई


कत्ल गैरों से होता तब भी जायज़ था

मुझे तो मेरे अपनों की तेग़ मार गई

आज फिर से वो अपनों से हार गई

बेबस औरत

भीड़ में भी आज बशर अपनों को ढूंढे

नाराजगी मेरे सीने में खंजर उतार गई

आज फिर से वो अपनों से हार गई


तू छोटा मैं बड़ा हूँ बस इसी लहज़े से

कि भूल सारे मैं अपने अधिकार गई

आज फिर से वो अपनों से हार गई।


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