तुझे कौन जीना सिखाये अबला
तुझे कौन जीना सिखाये अबला
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सच को कितना छुपाएं जिंदगी,
झूठ जीत ना पाए जिंदगी।
तू गुज़र रही है अमावस की तरह
ऐसे आलम में क्या मार जाएं जिंदगी?
तनाव चल रहा है कुछ दिन से,
कैसे खुद को खुश रख पाए जिंदगी?
तू लड़खड़ाए बिन चलने ही ना देती,
ऐसे आलम में क्या से क्या कर जाएं जिंदगी?
जो बोझ डाल दिया कंधों पर,
कैसे भर उठाए जिंदगी।
तू हिम्मत तो मुझ को देती है,
पर क्या चोट उम्र भर खाए जिंदगी?
धीरे से ये साँझ ढले ग़म की,
कैसे भोर खुशी की लाए जिंदगी?
तू गला पकड़कर बैठी है,
कैसे गीत सुहाने गाये जिंदगी?
