अपने हिन्द के
अपने हिन्द के
अंदाज शायराना नहीं है मेरा..बस अपने हिन्द के ये हालात कहूँ...
रचनाओं के जरिये ही बस मैं..अपने दिल की बात कहूँ...
उर्दू का बिलकुल ज्ञान नही पर..मैं सारी कविताएं सुनती हूं....
मैं तो अपने शब्दों के लिए बस..हिंदी भाषा को ही चुनती हूँ...
सभी भाषाओं का सम्मान करूं मैं..ना हीन भावना मेरे मन में...
हिंदी को लिखने में गर्व महसूस करूँ..हिन्द बसा मेरे तन में...
तरह-तरह की भाषाएं इस जग में..सारी ही पूजी जाती हैं...
कहने में फिर क्यों शर्म करूँ..मुझको तो हिंदी ही भाती है...
हिंदी है मेरी मात्र भाषा..इसका पहले शीश झुका सम्मान करूँ....
उसके बाद फिर आगे बढ़कर इसका ही गुण-गान करूँ...
माना मैंने कि उर्दू भाषा से..कविताओं की सुंदरता बढ़ जाती है....
पर बात जो सबसे कहना चाहूं..वो हिंदी में ही समझ मे आती है...
बड़े बड़े महारथी इस जग में..जो भाषाओं के ज्ञाता हैं....
कहते है इस बच्चे को बस..हिंदी में ही लिखना आता है...
उनसे कहना चाहूंगी मैं के..इस बच्चे की तरफ ना ध्यान करो...
जो शब्द पिरोए हिंदी में मैंने..पहले उसका सम्मान करो...
मित्र जन और बंधुओ से बस मैं...इतना ही कहना चाहूंगी ...
मेरी मात्र भाषा हिंदी को मैं अब वापस..उच्च शिखर तक पहुँचाऊँगी ..
हिंदी भाषा से ही मै अपनी..एक नई पहचान बनाऊंगी ...
कहनी होगी बात जो मन की...हिंदी में ही समझाऊंगी ..
