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Dr.Pratik Prabhakar

Drama

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Dr.Pratik Prabhakar

Drama

अपना गांव

अपना गांव

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छत की मुंडेर से दिखता पूरा गांव

पीपल का पेड़ बरगद की छांव


परदेसी बन देश को छोड़ा

राह में आया कठिन रोड़ा।

बेताब है अभी चलने को

उन पगडंडियों पर पाव।


सपने आते हसीन से

भूली बिसरी रंगीन से

कैसे हरियाली खुशहाली

कितनी मनोहर धूप छांव।


कहीं गिल्ली डंडा कहीं गोली

कहीं दीपक कहीं रंगो की होली

कहीं कबड्डी खेलते बड़े लड़के

कहीं पहलवानों की अच्छी दाव।


याद आता है गांव

पीपल के पेड़ बरगद की छांव।


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