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Janhavi Singh

Abstract

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Janhavi Singh

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अपना बनारस

अपना बनारस

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आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे,

किसी होटल में नहीं,

तुम्हें अपने ही घर में ठहरायेंगे,

जहां लोग तुम्हें अपना-अपना कह कर बुलाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


सुबह-सुबह तुम्हें गंगा आरती दिखाएंगे,

घाट के उस पार का सूर्योदय दिखाएंगे,

अस्सी घाट की चाय पिलाएंगे,

और फिर गलियों में गूंजती हुई अज़ान सुनाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


नाव पर बिठा कर नौका विहार कराएंगे,

घाट के उस पार के जानवरों से मिलाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


संकट मोचन, काल भैरव और विश्वनाथ के दर्शन कराएंगे,

मधुबन की कोल्ड कॉफी,

दुर्गाकुण्ड की पावभाजी और नाटी

इमली की कचौड़ी चाट खिलाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


लेबर कॉलोनी की धूपचंडी,

लहुराबीर का मस्ज़िद और

कैंटोमेंट का गिरजाघर भी दिखाएंगे,

तुम चाहे किसी भ

ी मज़हब के हो,

तुम्हें यहां तुम्हारे मज़हब से मिलाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


मैदागिन से तुम्हें कपड़े दिलाएंगे,

गोपी गली के झुमके और घड़ियां दिलाएंगे,

JHV में तुम्हें सिनेमा दिखाएंगे,

और साथ में कोल्ड ड्रिंक और पॉपकॉर्न मंगाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


लौटते वक्त बनारसी पान खिलाएंगे,

फिर तुम्हें रामनगर का किला दिखाएंगे,

और वहां की लस्सी भी पिलाएंगे,

रिक्शे का तुम्हें हम सफ़र कराएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


मानस मंदिर की कलाकृतियां दिखायेंगे,

पिपलानी कटरा की अद्भुत मूर्तियां दिखाएंगे,

सारनाथ का अशोक चक्र दिखाएंगे,

सीता की रसोई, बुद्ध की प्रतिमा दिखाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


मणिकर्णिका और कब्रिस्तान पर

तुम्हें जीवन का सत्य दिखाएंगे,

आओ कभी मिलने,

तुम्हें अपना बनारस घुमाएंगे।।


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