अनुभव
अनुभव
पुजारी हूं मैं सुंदरता की
विराजमान जो मानव मन में,
आभारी हूं मैं प्रकृति की-
हर कहीं उसकी सभी देन से।
जी करता है बांटते फिरूँ मैं
अपने दिल की सारी खुशियों को,
जी करता है मिटा दूं जग से,
नफरत को और हिंसा को।
जिंदगी यह दो पल का है
उज्ज्वल बनाना चाहूं ऐसा,
चमकता रहे जब तक रहे -
कमल पत्र पर पानी जैसा ।।
