अनोखी राखी
अनोखी राखी
चलो इस राखी तुम सबको
एक कहानी नयी सुनती हूं
इसमें ना कोई भाई है
दो बहनों से मिलवाती हूं
बचपन से सुनती आई थी
दो बहने हो बस भाई नहीं
मां को देखा सहते ताना
क्यों देती इनको भाई नहीं
वो समझ ना पाती थी यह सब
क्यों भाई जरूरी था इतना
दो बहने क्या काफी ना थी
क्यों मां सुनती सबका ताना
एक दिन वो त्योहार का आया
चारों तरफ उत्साह छाया
हर त्योहार का थी वो अब तक हिस्सा
क्यों इस बार उनका ना त्योहार आया
वह पूछ ही बैठी मां से उस दिन
क्यूं राखी नहीं भाई के बिन
हम दो बहने एक साथ है फिर
क्यूं सुनी कलाई राखी के बिन
मां बोली रक्षा करता भाई
यह रीत सदियों से चले आई
यह राखी नहीं सिर्फ एक धागा
वचनों से बना है यह धागा
जिसकी कलाई पर बंध जाए
मीठा रिश्ता उसे दे जाए
फिर हाथ में उनके एक थाली थी
जिसमे रोली और राखी थी
दोनों को देकर एक एक राखी
बोली बांधो एक दूजे को राखी
एक दूजे की रक्षा अब
तुम को कर के दिखलाना है
राखी से मिला ये वादा अब
तुम दोनों को निभाना है
एक दूजे की कलाई पर
फिर बांधी दोनों ने राखी
इस बार दोनों बहनों की भी
आयी थी प्यारी राखी
रक्षा और विश्वास का ये
मीठा सा त्योहार होता राखी
दोनो बहनों का भी तो
त्योहार हो सकता राखी
देख कलाई पर राखी
आंखों में खुशी सी छाई थी
चेहरे पर उन दोनों के
एक नई चमक सी आई थी
इस बार मनायी थी उन
दोनों बहनों ने अपनी राखी
हर साल सजेगी कलाई पर
अब विश्वास वाली ये राखी
इनका ना कोई भाई था
दो बहनों की थी ये राखी
एक नयी रीत ले आयी
इन दो बहनों की अनोखी राखी