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Ranjan Shaw

Romance

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Ranjan Shaw

Romance

अनकहा प्रेम

अनकहा प्रेम

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क्या तुम्हें भी प्रेम था ?

बताया भी नहीं कभी

जताया भी नहीं कभी


मैं जब भी रूठा तो मुझे

मनाया भी नहीं कभी

रोया तो

चुप कराया भी नहीं कभी ?


तेरे लिए था जो भी

मेरे इस दिल में कहीं

मैंने भी तुम्हें कभी

बताया ही नहीं।


होती थी बातें हमारी

होती थी मुलाकातें हमारी

फिर न तुमने और मैंने भी

पुछा दिल का हाल कभी ?


एक रोज सुबह उठकर देखा

तुम्हारी दी हुई किताब को

पन्नों से निकल आया

मेरे लिए एक गुलाब को।


आज समझ पाया हूं मैं

तुम्हारे उस अनकहे प्रेम को।


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