अंधेरा
अंधेरा
क्यूँ भागता है उसके पीछे जो नसीब में नहीं
मान भी ले प्यार कर सकता है पा सकता नहीं !!
बेशक़ इस ज़माने को उस जलन की हवा भी नहीं
तू ऐसी आग है जल के भी खुद को सर्दी से बचा सकता नहीं !!
दुनिया वालों को सफ़ेदी की कोई कदर नहीं
तू साफ़ रह कर भी उनकी नज़रों में उठ सकता नहीं !!
रास्ते में मिलने वाला राही स्वयं मंज़िल जाये मुमकिन नहीं
तू बेपानाह चाहके भी जाने वाले को रोक सकता नहीं !!
क्या चाँद ख़ुश है अँधेरे में ये बात किसी ने उससे पूछी नहीं
मान लेना अँधेरे को क़िस्मत पर ये भी तो कोई बात नहीं !!