ऐसी पहचान बनाओ अपनी
ऐसी पहचान बनाओ अपनी
उस चातक के प्यास सी,
प्यास बनाओ अपनी,
उस चकोर के जैसे ,
आस बनाओ अपनी,
जीवन को जीना है कैसे,
पूछो उस रेशम के कीड़े से,
मर कर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
सोच कभी सीमित न रखो,
ख्वाब रखो सदा ऊंचा
लिख कर कभी जो मिट न सके,
ऐसे निशां बनाओ अपनी,
मर कर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
निर्भर न रहो कभी तुम,
अपनी किस्मत की रेखा पर,
अपने मस्तक की रेखा खींचो,
कर्मों को कलम बनाओ अपनी,
मरकर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
लहरें कितनी उठती हैं,
जल में भी जीवन में भी,
टकराना सीखो लहरों से,
लहरों से भी ऊपर उठकर,
संघर्ष को सफल बनाओ अपनी,
मरकर भी जो पहचाना जाए
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
देखा होगा तुमने लहरों को,
चट्टानों से जूझते,
हम दिखलाएंगे तुमको,
लहरों की चोट से चट्टानों को टूटते,
दरक जाए जिससे चट्टानें,
जीवन को ऐसी लहर बनाओ अपनी,
मरकर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
तुम युवा हो तुम शक्ति हो,
नव उदित सूरज हो तुम,
मचलती लहर हो कल की तस्वीर हो,
बदलते युग की तकदीर हो तुम,
वक़्त की रेत को मुट्ठी में कर,
आगाज़ करो तुम नव युग का,
गर्व करे नवपीढ़ी तुम पर,
ऐसे पदचिह्न बनाओ अपनी,
मर कर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
तेरे मिसाल का लिए मशाल,
तेरी ऊर्जा का लिए भाल,
चल पड़े तरुण तेरे चिह्नों पर,
युग है नैय्या तुम हो पतवार,
वक़्त के मस्तक पर अलंकृत हो जो,
विजय तिलक बन जाओ ऐसी,
मर कर भी जो पहचाना जाए,
ऐसी पहचान बनाओ अपनी।।
