ऐ ज़िंदगी!
ऐ ज़िंदगी!
ऐ ज़िन्दगी !
मेरे अपनों को
कभी एहसास कराना
उनके लिए प्यार अथाह
कभी ये थाह लगाना
जीवन ही जिनसे शुरू किया
उनसे मोहब्बत बेपनाह बतलाना
कुछ गुस्ताखियों की
माफी की अर्जी लगाना
ऐ ज़िन्दगी !
मेरे अपनों को कभी
मेरा दर्द भी दिखलाना
जो लफ़्ज़ों में न हो बयां
वो बातें सुनाना
तकलीफ जो कभी दी हम
रोये बेज़ार ये जतलाना
बदनीयती नहीं हमारी लेकिन
बदकिस्मती है ये समझाना।
