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ASHWANI SRIVASTAVA

Abstract

5.0  

ASHWANI SRIVASTAVA

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अभिलाषा

अभिलाषा

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काल रात्रि की वो बेला,

नव विहार अंकुरित हुआ।


आज का भास्कर,

अंलकार किया तुम्हारा।


मद-मस्त हवाओं ने

मेघों का रूदन।


किया जल प्रपात

मानों अभिलाषा में।


फागुन का बौर

कुलश्रेष्ठ हुयी लालिमा।


क्या भानु क्या विभानु

कण-कण में, मंद-मंद में।


नव विहार अंकुरित हुआ

काल रात्रि की बेला।


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