अभिलाषा
अभिलाषा
काल रात्रि की वो बेला,
नव विहार अंकुरित हुआ।
आज का भास्कर,
अंलकार किया तुम्हारा।
मद-मस्त हवाओं ने
मेघों का रूदन।
किया जल प्रपात
मानों अभिलाषा में।
फागुन का बौर
कुलश्रेष्ठ हुयी लालिमा।
क्या भानु क्या विभानु
कण-कण में, मंद-मंद में।
नव विहार अंकुरित हुआ
काल रात्रि की बेला।
