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Ak Kumar

Abstract

4.5  

Ak Kumar

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अभी तो सीखा उड़ना मैंने .

अभी तो सीखा उड़ना मैंने .

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अभी तो सीखा उड़ना मैंने

मुझसे मेरा आसमान ना छिनो।

अभी तो सीखा चलना मैंने

मुझसे मेरी चाल ना छिनो। 


अभी तो सीखा बोलना मैंने

मुझसे मेरी आवाज ना छिनो।

अभी तो सीखा लिखना मैंने मुझसे

मेरी कलम की दवात ना छिनो।


अभी तो शुरू किया मैंने घर से निकलना

हर गली मोहल्ले में मेरी बात ना छेड़ो।

शुरू हुआ जो सफर

उसे अभी खत्म ना कर दो।


इन समाज की बेड़ियों में

जकड़ कर मुझे बंद ना कर दो।

अभी सीखा ना तोड़ना

इन समाज की बेड़ियों को।


इन बेड़ियों को मुझसे

थोड़ा दूर ही रख दो।

अभी तो सीखा चलना

मैंने मुझसे मेरी चाल छीनों।


मुझसे मेरी चाल न छीनों

अभी तो बढ़ाए हैं दो कदम हीं

मैंने इन कदमों को पीछे

खींचने का मुझ पर दबाव न छोड़ो।


अभी तो निकले हैं पंख ही मेरे इन

पंखों को फैलाने से मुझे आज ना रोको।

अभी तो सीखा उड़ना मैंने

मुझसे मेरा आसमान ना छीनों।


मुझसे मेरे कलम की दवात ना छीनों

यह समाज सुन ले यह मेरी भी

बातें खड़ी कर दे चाहे तु हजार दीवारें।

इन दीवारों के लिए मेरी

एक ही चाल काफी होगी।


जो सीख लिया मैंने उड़ना फिर

आसमाँ के सीतारों से ही मेरी बात होगी।


अभी तो सीखा उड़ना मैंने

मुझसे मेरा आसमान न छीनों।

मुझसे मेरे कलम की दवात ना छीनों।


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