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अब गैरों में गिनता है

अब गैरों में गिनता है

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बहुत ही देर से

अपना कोई है

रूठा है...


मेरे अरमान का कतरा

न उभरा है

ना डूबा है...


नही हूँ प्यार में उसके !

मगर फिर भी उदासी है

मेरे जो साथ है अपना

न कहता है

ना सुनता है...


जो तेरे साथ थे लम्हे

कतर के कतरे कर डाले !

नही जो यार के काबिल

न जाने क्या वो बनता है !


वही टुकड़े वो कतरे के

हवाले आग कर डाले

कभी रहता था अपनो में

अभी गैरो में गिनता है...!


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