अब भी समय है
अब भी समय है
अधूरा है तनमन, अधूरी कहानी
दिल में मायूसी है, आँखों में पानी
भ्रमों में लटका हुआ है ये जीवन
व्यर्थ में अटका हुआ है ये जीवन
न बुझता दीया, न रुकती हवाएँ
पर, सबकुछ है कहती ये झुकी
निगाहें॥
उस दिन तुझ से जब हम मिले थे
प्रेम के पुष्प मेरे भी दिल में खिले थे
ये सबकुछ तुम्हें मैं बताने चला था
तुम हो जाओ मेरी! मनाने चला था
पर, कहने से पहले हिचकिचाहट
मुझे थी
समय के बदलने की न आहट
मुझे थी
इतने में जीवन में एक मोड़ आया
प्रेम पर घिरा एक घनघोर साया
समय के फेरों से संभल न सका मैं
होनी को होने से बदल न सका मैं॥
पर, ये बात मैंने अब तक न समझा
षड़यन्त्र था किसका ? मैं अब तक
न समझा
शायद कमी थी हम में ही, जो भरोसा
से पिछड़े
गैरों के बातों में आकर, अपनों से
बिछड़े
ग़लतफ़हमी की धारा में बहते रहें हम
एक-दूजे पर गुस्सा भी करते रहें हम
बीत गया वह समय, जो आया भी न था
खो दिया हमने वह भी, जो पाया भी
न था॥
तुम बदलती गई, संभलता रहा मैं
तुम बिछड़ती गई, दूर होता रहा मैं
सहारा तू ही मिली थी जीने के लिए
अब तो कुछ न बचा है खोने के लिए
मानता हूँ, कुछ ग़लतियाँ भी हुई थी
चंचल दिलों से त्रुटियाँ भी हुई थी
पर सत्य आधा है, आधा तुझे न
पता है
मृत्यु से बढ़कर कैसी ये सज़ा है ?
रातें सबको मिली है सोने के लिए
पर बची है रातें मेरी बस रोने के
लिए॥
इन सब कष्टों को हँस हँस सहा मैं
दूर थी तुम इतने कि कुछ कह न
सका मैं
पर, टूटा मैं उस दिन, सहा न गया
तब
फ़ालतू जो मुझे, तुमने था कहा जब
निराशा से उस दिन मैं भी रोया था
मन-ही-मन तूने मना जो किया था॥
क्रोधित होना भी तेरा उचित है, मगर
सूख जाएंगे जब प्रेम के ये फसल
फिर बारिश भी होने से क्या फायदा ?
इतने क्रोधित भी होने से क्या फायदा ?
प्रेम को जानना है ? तो मुझ को न
देखो
देखना है तो मेरे आँखों को देखो
दो आँखें ही मेरी सबकुछ कहेगी
कोई माने न माने, ये कहती रहेगी
भले सौ कमी हो मुझमें, पर प्रेम में
न कमी है
ध्यान से तुम देखो, मेरे आँखों में
नमी है॥
प्रेम था मेरा निश्छल, ये निश्छल रहेगा
प्रेम कल भी था तुझ से ही कल भी रहेगा
याचना है यह अंतिम, यह अंतिम संदेशा
करता हूँ तुझ से है अंतिम ये आशा
जो कहानी तेरे बिन अधूरी है मेरी
अब भी समय है, कर दो न पूरी॥