अब भी मैं प्यार करती हूँ
अब भी मैं प्यार करती हूँ


नाम भी न मेरा, सब तुम्हारा
अपनाके पलपल जीती हूँ।
और तुम कैसे पूछ लेते हो,
'क्या अब भी मैं प्यार करती हूँ ?'
शर्ट तुम्हारी उठाऊं तो अब भी
खुशबू जी भर भर लेती हूँ।
किताबें बिखरी समेटते हुए
फिर वो उंगलियाँ छू लेती हूँ।
तुम आने के बाद कहने की
कितनी ही बातें सोच रखती हूँ।
फिर भी जानना चाहते हो,
की अब भी उतना ही प्यार करती हुँ!
तुम्हारा खाना, तुम्हारा सोना
तुम्हारा गुस्सा, होके भी सिकुडना।
नाराजगी जताते हुए हरपल
बस मैंने मनाने के लिए रुकना।
झेलके सारी नादानी हरपल,
यूँ हँसी पहने ही रहती हूँ।
और तुम पूछते रहते हो,
क्या अब भी मैं प्यार करती हूँ ?
मेरी खामोश तनहाईयाँ ले छुपे
तुम्हारी मंजिलोंका सजना
तुमसे शुरू, तुम्ही से कयामत
और कुछ न हो जीना
दिन, महीनें, साल और गुजरें
मैं यूँही तुझमें ही बसा करूँ
बार - बार बस कहती जाऊँ
हां, अब भी मैं प्यार करती हूँ।
हां, अब भी मैं प्यार करती हूँ।