आने दो दुनिया में उसको
आने दो दुनिया में उसको
क्यों छोटे छोटे अंगों को उसके
खींच तान कर काटवा देते हो
क्या गुनाह किया उस मासूम ने
किस बात की उसे सजा देते हो
है जहाँ सुरक्षित नन्हीं सी जान
वहीं वो बच्ची मौत से लड़ती है
बोटियाँ कटती है नन्हें अंगों की
"माँ" तक आवाज़ न पहुँचती है
धरती भी अपनी कोख से
एक मासूम अंकुर जनती है,
वैसा ही एक नन्हा सा बीज
धरा भी अंकुरित करती है
बीज का लिंग पहचानकर ?
धरा क्या कभी संहार करती है?
पेड़, पौधे, लताएँ, क्यारियाँ
सब जनते हैं नन्हीं कलियों को,
जननी ही है यह प्रकृति भी..
हर क्षण कुछ नया जन्म लेता है..
ना माँ की कोख में मारा जाता है
ना जन्म के बाद कुचला जाता है
सुनयना भी माँ थी जिसने
धरती में दबी सीता को पाया था
ख़ुद नहीं जना था फिर भी
पर कन्या को अपनाया था
राधा को भी नहीं किया था
पैदा कीर्ति ने कोख से
युग था वो भी जहाँ क़ुबूला
मिली जो कन्या ख़ाक से
बोटी- बोटी में बँटती जब वो
चीख कर पुकार भी ना पाती
एक लिंग ने किया जीवन का फैसला
वरना वो भी गर्भ में बढ़ पाती
काश हक़ में होता उसके
वो अपना लिंग बदल पाती
बेदर्दी से कटने से पहले
इस दुनिया में वो आ जाती
आने दो दुनिया में,
बढ़ने दो उसको भी,
बेटी उपहार है ईश्वर का,
कंधों का बोझ नहीं।
