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Nilesh Vaghela

Abstract

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Nilesh Vaghela

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आखरी बार...

आखरी बार...

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तो क्या लिखूं,

मिलके तुमसे आखरी बार,

जब चाहता हूँ जुड़ना

होके मशहूर - एक आखरी बार।


मिलके लिपट जाए,

सायद लब हमारे,

तो, थम जाए 

दो सांसे आखरी बार।


नही मोहताज,

ये दिल किसी बेगाने दिल का,

तो क्यों भाग रही,

तू फिरसे आखरी बार।


था रेगिस्तान सा,

इस दिल में मेरे,

जहा खिला फूल,

तेरी -- कली का आखरी बार।


खूबसूरत --तेरी,

नमी की जुबानी,

करती बयाँ,

आसमाँ से बरसके आखरी बार।


और

समंदर सी गहरी, वो आंखे तेरी,

सायद डूबा दे अमी में,

मुजे आखरी बार।


तू सोती रही,

बनके निशा सी अनजानी,

बन गया में सायर अंधेरा,

फिरसे आखरी बार।


नहीं पता ये वख्त का,

न उसके दस्तुर का,

जो लिख देता है,

अनकही कहानी हर बार।

और दे जाता है सितम,

हसीन नई बार।


तो क्या हुआ

के हम वख्त से परे नई

तो क्या हुआ

के हम सबके खरे नई

पर खो जाए रब में खोके,

खुदको


तो क्या पता,


मिल जाये रूह हमारी 

एक आखरी बार।


अगर रो देता में भी

तो कैसे हँसाता तुझे

शायद इसलिए जम गया में

पिघलने से पहले

आखरी बार।


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