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Nisha Bharmal

Abstract

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Nisha Bharmal

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आज थोड़ा रूक जाते हैं

आज थोड़ा रूक जाते हैं

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रुको जरा सुनो 

कहाँ चल दिये 

इतनी भी क्या जल्दी तुम्हें

आओ जरा गुफ्तगू करें!


इस दुनिया मैं आने से पहले

और अब इस पल तक 

बस दौड़े जा रहे हो

आज थोड़ा रूक जाते हैं!


रोज सुबह 6 बजे उठ जाते हैं

आज 10 मिन और सो जाते हैं 

चलो आज थोड़ी देर 

हम ठहर जाते हैं!


आज बारिश को 

खुले हाथों से अपनाते हैं 

बरसात के साथ साथ

सारी परेशानियों को बहा देते हैं

चलो आज थोड़ा और जीते हैं!


चाय की प्याली क़ो 

सुर के पीते हैं

हर एक घूँट को अपनों के साथ 

बड़ी ताव से पीते हैं

चलो आज अपनों के लिए जीते हैं!


ऐसे हसीन मॉन्सून में

उन दोस्तोंसे बातें करते हैं 

दिल के पास जो हमेशा थे

बस कुछ दूर से हो गए 

खट्टी मिठी यादे वो 

चलो आज फिर से जी जाते हैं!


अब इतना सब कर चुके

तो अपने लिएभी ठहर जाओ 

पुरानी अपने सपनों को 

आज फिर थोड़ा जीते जाओ

दुनिया की इस भागदौड़ में

चलो कभी अपने लिये भी जीते हैं!



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