Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Riya Sikdar

Abstract Classics

4.8  

Riya Sikdar

Abstract Classics

"आज की नारी "

"आज की नारी "

1 min
264


धूप-छांव, कांटे-फूल

हर रुख से तेरी पहचान है,

तू एक नारी है तू खुद ही 

खुद का अभिमान है।


गर हद पार कर जाए तो

तू एक आवारी है,

बेबाक है तू सबसे

तू आज की नारी है।


हर अगला कहता है तूझे

नहीं तू झांसी की रानी है,

याद दिला दे तू सबको

के तुझमें एक मर्दानी है।


तेरे ही बलिदानों से

बनी यह धरती सारी है,

बेबाक है तू सबसे

तू आज की नारी है।


पिता का नाम छोड़कर 

तू पति का नाम अपनाती है,

चार दिवारी के मकान को

तू ही तो घर बनाती है।


तेरी चुप्पी के तले

एक ज्वाला विनाशकारी है,

बेबाक है तू सबसे

तू आज की नारी है।


कन्यादान में दे दिया जिसे

तू पिता की वह कमाई है,

नाज़ो से पली बढ़ी

उस मां की तू परछाईं है।


अपनी एक पहचान बनाना

तेरे लिए जरूरी है,

बेबाक है तू सबसे

तू आज की नारी है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract