आज का सच
आज का सच
दुनिया में इस दहशत को देखकर यह दिल रो उठता है
क्या इस ज़क़्म का कोई मरहम नहीं ? दिल बार बार पूछता है !
क्यों आज इंसा ही इंसा का दुश्मन है ?
क्यों अब मौत की दहशत से भरा हर इंसा का मन है ?
इंसान ही इंसान की जान ले रहा है
प्यार दौलत और रुतबे का भाईचारगी को धुंधला रहा है !
ज़माने भर में मासूम बेवजह जान खो रहे हैं
लम्हा-लम्हा सबके चेहरों को आंसू धो रहे हैं !
खुदगर्ज़ी के सिवा अब कुछ मायने नहीं रखता
बिक रहा है नफरत और फरेब की दुनिया में मज़हब सस्ता !
दुनिया के साथ लोगों के दिल भी छोटे हो चुके हैं
बरसो पुराने अनमोल रिश्ते खोटे हो चुके हैं !
हर शक़्स दूसरे शक़्स कि शोहरत का है प्यासा
भर दिया है बेईमानी ने ईमान का कासा !
खो दिया है ईमान का रस्ता आज हर इंसान ने
यही है आज का खौफनाक सच कोई माने या न माने !
