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Arshi Arif

Abstract

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Arshi Arif

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आज का सच

आज का सच

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दुनिया में इस दहशत को देखकर यह दिल रो उठता है

क्या इस ज़क़्म का कोई मरहम नहीं ? दिल बार बार पूछता है !


क्यों आज इंसा ही इंसा का दुश्मन है ?

क्यों अब मौत की दहशत से भरा हर इंसा का मन है ?


इंसान ही इंसान की जान ले रहा है

प्यार दौलत और रुतबे का भाईचारगी को धुंधला रहा है !


ज़माने भर में मासूम बेवजह जान खो रहे हैं

लम्हा-लम्हा सबके चेहरों को आंसू धो रहे हैं !


खुदगर्ज़ी के सिवा अब कुछ मायने नहीं रखता

बिक रहा है नफरत और फरेब की दुनिया में मज़हब सस्ता !


दुनिया के साथ लोगों के दिल भी छोटे हो चुके हैं

बरसो पुराने अनमोल रिश्ते खोटे हो चुके हैं !


हर शक़्स दूसरे शक़्स कि शोहरत का है प्यासा

भर दिया है बेईमानी ने ईमान का कासा !


खो दिया है ईमान का रस्ता आज हर इंसान ने

यही है आज का खौफनाक सच कोई माने या न माने !


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