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Bhargavraj Mor

Abstract Romance

4  

Bhargavraj Mor

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आईना

आईना

1 min
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काश मैं तेरे घर का आईना होता,

रोज सुबह तेरा मेरे सामने दीदार होता

वो तेरा जुल्फों को सवारना और,

यूँ शर्माके देखना काश मेरी तकदीर में होता


वो तेरा आंखों में काजल लगाना,

और तेरी आंखों में हमें खो जाना,

 हमारे नसीब में होता 

वह तेरा बिंदी लगाना और

फिर मुड़कर देखना,

और हमारा दीदार करना हमारे नसीब में होता


वो तुम्हारा कानों में झुमके लगाके मधुर आवाज करना,

और दिल की धड़कन को जगाना क्या दिन होता

वो तुम्हारा लफ्ज़ों का मुस्कुराना,


और हमें उसी मुस्कुराहट में खो जाना,

काश हमारे नजरों के सामने होता

वो तेरा खुश होना और हमारे सामने आना,

और हमारी खुशी की वजह बनना तुम्हें मंजूर होता

तुम्हारा तो काम है रोज आईने के सामने आना,


और हमारा काम है तुम्हें देखना,

और देखते देखते प्यार हो जाना,

काश खुदा को मंजूर होता।


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