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Amitav Sahu

Abstract

3  

Amitav Sahu

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आग

आग

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भूखे पेट में आग

चूल्हे में आग

नृसंश की उग्र आँखों में आग

बंदुक की नोक पर आग

बारूद की ज़मीन पर आग

आग ! जलता है जलाता है जल भी जाता है

आग में चलता दुनिया

आग में जलता भी दुनिया ।


यह आग

चूल्हे में चावल बनकर पकता है

किसी भूखे पेट को भरने में

यह आग मंदिर में मसजिद में

धूप दीप बनकर जलता है

शांति और प्रगति के नाम पर

फिर कभी सबुत को मिटाने के लिए

किसी युवती का बदन जलता है आग में

राख बनकर।


अब तो हर जगह

आग ही आग है

आग में जल रहा है

गांव, बस्ती, शहर

कुछ न कुछ मतलब के नाम पर ।


शुभ में आग

शव में आग

जन्म में आग

जन्मंत में आग

ये आग सारे और सबकुछ

पंचतंत्र के एक अभिन्न अंग है

जो पवित्रतम है

इंसान सिर्फ रूप देता है

अपने स्वार्थ के मकसद को

पुरा करने के लिए ।


पर याद रखे

आग ! जलता है, जलाता है,जलादेता है

इंसान सिर्फ जलता है

अपने अपने कर्म में ।



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