बीना
बीना
बीना छोटी थी तभी उसकी माँ अपने गाँव के मालगुजार के घर काम करती थी।
बीना को पढ़ने का शौक था, मालकुजार ने उसके पढ़ने की व्यवस्था की। उसने यह बात याद रखी, उस एहसान को चुकाने की बात सोचती रहती थी, बीना डॉक्टर बन गई।
माँ गाँव में काम करती रही, बीना के स्वाभिमानी स्वभाव ने उसे कर्ज़ चुकाने का मौका दिया, वह गाँव के सरकारी अस्पताल में अपनी सेवा देने लगी।
मालगुजार का सिर भी गौरव से उठ गया।